"क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल हो"
कुछ दिनों पहले एक मित्र के याद दिलाने पर रामधारी सिंह 'दिनकर' की यह कविता पढ़ने का मौका मिला| आधुनिक हिन्दी साहित्य के जाने माने कवि दिनकर की "शक्ति और क्षमा" अपने शीर्षक के दोनों शब्दों को बेहतरीन तरह से समझाती है| कविता का सार है की शक्ति और क्षमा परस्पर एक दूसरे के साथ ही शोभा देते हैं| क्षमा कर देना हर व्यक्ति के बस में नहीं होता| जिस व्यक्ति में किसी पर वार करने का बल न हो वह क्षमा करने योग्य नहीं होता बल्कि जो शक्तिशाली है, जिसमें कुछ बिगाड़ पाने का बल हो, क्षमा उसी व्यक्ति पर शोभा देती है|
कुछ दिनों पहले एक मित्र के याद दिलाने पर रामधारी सिंह 'दिनकर' की यह कविता पढ़ने का मौका मिला| आधुनिक हिन्दी साहित्य के जाने माने कवि दिनकर की "शक्ति और क्षमा" अपने शीर्षक के दोनों शब्दों को बेहतरीन तरह से समझाती है| कविता का सार है की शक्ति और क्षमा परस्पर एक दूसरे के साथ ही शोभा देते हैं| क्षमा कर देना हर व्यक्ति के बस में नहीं होता| जिस व्यक्ति में किसी पर वार करने का बल न हो वह क्षमा करने योग्य नहीं होता बल्कि जो शक्तिशाली है, जिसमें कुछ बिगाड़ पाने का बल हो, क्षमा उसी व्यक्ति पर शोभा देती है|
इसी प्रकार त्याग उसी व्यक्ति पर शोभा देता है जिसके पास त्याग करने योग्य कुछ हो| जैसे राजकुमार सिद्धार्थ जो राज-काज और संपत्ति के त्याग के बाद गौतम बुद्ध बने| कोई भिखारी या ग़रीब त्याग करे इसका कोई अर्थ नहीं बनता क्योंकि उसके पास त्याग करने के लिए है ही क्या? और अब बात ईमानदारी की। एक अमीर व्यक्ति यदि किसी के बकाया रूपए लौटाए तो वह इमानदार है। बेशक वह इमानदार है। पर ऐसा व्यक्ति जिसके पास कुछ ख़ास संपत्ति या धन नहीं है फिर भी बेईमानी के पैसे लेना उसकी फितरत में नहीं है, जो बकाया पैसे सूत समेत बिना बहाने लौटा दे, ऐसा व्यक्ति न ही सिर्फ ईमानदार है बल्कि सम्मान के योग्य भी है।
शायद आपको लगेगा के आज के समय में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो शक्तिशाली होने के साथ क्षमाशील हो, धनी होने के साथ त्यागी हो, और ईमानदार तो बस एक शब्द भर सा लगता है। आपको आश्चर्य होगा यह जानकर के मैं वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जिसके पास किसी तरह बस दो वक़्त की रोटी कमाने का जरिया है, जो महनत का काम कर अपने परिवार का पेट भरता है, और इश्वर से बस इतना मांगता है की बेटे और बेटियाँ खूब पढ़ सकें और एक दिन इमानदारी और इज्ज़त की कमाएं और खाएं।
वह एक महिला है जो मेरे घर काम करती है। माता-पिता नौकरी पेशा है तो इन्हें हमने घर के काम और देखभाल के लिए रखा है। आप समझ सकतें हैं की किस तरह की महिला होगी वह जिसे हम "आई" कहतें हैं, मराठी में इसका अर्थ है "माँ"। आई किसी कहानी की आदर्श पात्र हो सकती है। पर वह सिर्फ एक कहानी की पात्र नहीं है बल्कि मानों जीवन के एक अद्ध्याय को समझ जाने के लिए बनाई गई एक पात्र है। आई की तरह जीवन जी पाना उतना आसान नहीं है जितना की मैं लिख पा रहीं हूँ या आप पढ़ पा रहे हैं। मानना होगा आई के उस धैर्य और विश्वास को जो आज भी दुनिया में अच्छाई को बनाए हुए है। कभी सोचती हूँ की कितना मुश्किल होगा हमारे लिए उस इंसान से अलग हो पाना जिसने खुद कभी पढाई तो नहीं की पर हमें बहुत कुछ सिखा दिया, जो खून के रिश्ते में कुछ न लगते हुए भी परिवार का हिस्सा है, जिसने हमसे काम या रुपये का रिश्ता नहीं बल्कि दिल का रिश्ता बनाया है। मुझे गर्व है की आई मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है।
इस सब के बाद भी वह तीन-चार हज़ार रूपए ही कमाती है। पर ये मूल्य उस काम का है जो उसका शरीर करता है, वास्तव में तो आई ने सम्मान कमाया है।
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